Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्षमा वाणी

 

क्षमा करो हे प्रभु परमेश्वर,
तुम अनादि अनंत जगदीश्वर,
सकल सृष्टि बस रूप तुम्हारा,
तुम प्रसीद जग में उजियारा,

 

अज्ञ अहं भाव भरा सो गलती,
क्षमा प्रार्थी माधव यह विनती,
चित मन काया पूर्ण समर्पित,
प्रणाम दंडवत महा जगवंदित.

 

बिधि शिव नित तुमको भजते,
बिस्वबास तुम कण कण बसते,
तव माया प्रबल मोहित करती,
कुशल शेष जो शरणागत भक्ति.

 

बसत चराचर हे आरति भंजन,
क्षमा करो अनंत हे देवकी नंदन,

 

जय दीनानाथ हरे,जय जगदीश हरे,
जय नन्दलाल हरे,जय जगदीश हरे.

 

 

' रवीन्द्र '
मुंबई

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