Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

छन्द स्वछन्द , होली के संग

 

बौराये मेरे नैन सजन, तेरे नैनों की चितवन से,
डोले फिरते ढूँढे तुझको, खेलें होली जनमन से ।

 

श्याम प्रेम रंग निर्भरा, नैनन की पिचकार,
जमुना सरयू तीर पर , बही भक्ति की धार ।

 

नैनन की तूलिका, मसिमय सजन शरीर,
न्यौता सबको रंग का, चित्रकार है जीव ।

 

काम क्रोध औ' लोभ के, कुत्सित काले रंग,
नैनों की रंगत फेर दे , धवल श्याम के अंग ।

 

इन नैनन के नीर से, निखरा चित्त का रंग,
तन का बाना रंग गया, मनवा सत के संग ।

 

जातपात का भेद मिटे, होली में भीगे गात,
इन नैनन में राखिये, केशव तरु पारिजात ।

 

नैना तो हो गये बावरे, प्रेम विह्वल हो जायें,
मैले मन से छीन कर , श्यामल रंग लगायें ।

 

अम्बर से अबीर ले, लाल गुलों से गुलाल,
राग द्वेष की होलिका , रंग नयनों से डाल ।

 

लाज हया को छोड़ के, उतरा तन का चीर,
नैनों में नाचे राधिका, मन भीगे भक्त्ति नीर ।

 

होली के अवकाश में, विचरें शब्द स्वछन्द,
ओंकार के छन्द में, ले अनुपम रस मकरन्द ।

 

नयनों में नीरजलोचन, गोलक कर ले बन्द,
होली हो दृग देश में, बाल मुकुन्द के संग ।

 

श्यामल रंग चुराये के, जनमन को देय लगाये,
नैनन के दूषण दूर हों, योगेश्वर के दर्शन पाये ।

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ