बौराये मेरे नैन सजन, तेरे नैनों की चितवन से,
डोले फिरते ढूँढे तुझको, खेलें होली जनमन से ।
श्याम प्रेम रंग निर्भरा, नैनन की पिचकार,
जमुना सरयू तीर पर , बही भक्ति की धार ।
नैनन की तूलिका, मसिमय सजन शरीर,
न्यौता सबको रंग का, चित्रकार है जीव ।
काम क्रोध औ' लोभ के, कुत्सित काले रंग,
नैनों की रंगत फेर दे , धवल श्याम के अंग ।
इन नैनन के नीर से, निखरा चित्त का रंग,
तन का बाना रंग गया, मनवा सत के संग ।
जातपात का भेद मिटे, होली में भीगे गात,
इन नैनन में राखिये, केशव तरु पारिजात ।
नैना तो हो गये बावरे, प्रेम विह्वल हो जायें,
मैले मन से छीन कर , श्यामल रंग लगायें ।
अम्बर से अबीर ले, लाल गुलों से गुलाल,
राग द्वेष की होलिका , रंग नयनों से डाल ।
लाज हया को छोड़ के, उतरा तन का चीर,
नैनों में नाचे राधिका, मन भीगे भक्त्ति नीर ।
होली के अवकाश में, विचरें शब्द स्वछन्द,
ओंकार के छन्द में, ले अनुपम रस मकरन्द ।
नयनों में नीरजलोचन, गोलक कर ले बन्द,
होली हो दृग देश में, बाल मुकुन्द के संग ।
श्यामल रंग चुराये के, जनमन को देय लगाये,
नैनन के दूषण दूर हों, योगेश्वर के दर्शन पाये ।
' रवीन्द्र '
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