Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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छुपे-रुस्तम

 

नज़र के सामने रह कर भी,
छुपा रहता है वो किस तरह ।

 

प्यार करते हैं बे-शुमार उससे,
जा कर जतायें तो किस तरह ।

 

आशिक़ों की कमी नहीं उसको,
निगाह में छायें तो किस तरह ।

 

दीखते हैं बेगाने से इस भीड़ में,
उसके मन भायें तो किस तरह ।

 

है पयामे - मुहब्बत वास्ते उनके,
थमायें हाथ उनके तो किस तरह।

 

निगारे हैं नगमें याद में उसकी ,
तरन्नुम में गायें तो किस तरह ।

 

मिले वो तो हर ख़ुशी चूमें कदम,
राह पाने की पायें तो किस तरह।

 

नयनों से हो कर बसे इस दिल में,
चाहें मगर बुलायें तो किस तरह ।

 

चिलमने-हया है या शौके-तड़पाना,
फाश ये पर्दा हो जाये तो किस तरह।

 

तकलीफ बढ़े तो शकल सँवरे उसकी,
दर्द हद से गुज़र जाये तो किस तरह।

 

पत्थरों में बसा, रमा हर जीव में,
निकल आ जाये, तो किस तरह ।

 

नज़र के सामने रह कर भी,
छुपा रहता है वो किस तरह ।

 

 

' रवीन्द्र '

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