दशशीश हरा, दशानन हरा।
हे राम तुमसे दशग्रीव हरा।
मैं मायापति , जड़- पति,
चैतन्य तुम, सकल जगत्पति।
तुम्हारी शक्ति से मैं हरा,
हताहत हो चरणों में गिरा।
हे राम तुमसे दशग्रीव हरा।
तुम अनादि अज ब्रह्म परा,
बिधि शिव सेवित रहत सदा।
मैं शिव सेवक अज्ञान जड़ा,
मद मोह रहा पाखंड भरा।
हे राम तुमसे वैश्रवण हरा।
शंकर सुवन जब हनुमंत हुआ,
मम तारण तव अवतार हुआ।
सृष्टि पालक मम कृपाल भया,
मुक्ति दायक तुमसे बैर हुआ।
हे राम तुमसे रक्षेन्द्र हरा ।
धन्य विभीषण तव भक्त हुआ,
मम हित हेतु तव शरण गया।
तामस तन मैं अभिशप्त रहा,
तव शर हत अब मुक्त हुआ।
हे राम तुमसे लंकेश हरा।
मम मदमर्दन अब इतिहास हुआ,
तुम परमेश्वर जग विदित हुआ।
रावण सच में कितनों का मरा,
कितनों का 'मैं' अभी ईश रहा।
हे राम क्या जग में रावन मरा।
युग युगांत तक 'मैं' शेष रहा,
संतो और देवों की त्रास बना।
हर युग में तव अवतार हुआ,
तव सुमिरन मात्र जब मंत्र हुआ,
हे राम तब सच में रावन हरा।
दशानन हरा , दशग्रीव हरा,
दशशीश हरा , जड़-जगदीश हरा।
' रवीन्द्र '
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