चित्त के गहरे दिये,
कामनाएँ बाती किये,
मनोरथ सब घृत बने,
भक्ति दीप तब जले।
सर्व हित संकल्प लिये,
राग द्वेष से मुक्त हुये,
दूषन रहित लौ लिए,
दीप सब प्रदीप्त हुये।
दीप हर उर में जले,
प्रकाश हरि हिय लिए,
समृद्धि सुख नूतन मिले,
दीपावली कुछ ऐसे मने।
' रवीन्द्र '
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