जो ना कह सकूँ तो, मज़ा क्या है जीने का,
जिसे तुमने लफ्ज़ कहा, है दर्द मेरे सीने का ।
' रवीन्द्र '
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जो ना कह सकूँ तो, मज़ा क्या है जीने का,
जिसे तुमने लफ्ज़ कहा, है दर्द मेरे सीने का ।
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