ख़त्म ना हो ज़िन्दगी, हसरतें अभी कुछ और हैं,
चाहतों से है इसे मुहब्बत, खताओं का ये दौर है ।
ख़ता की हो रही ख़िदमत, झूठा तरीका-ए-तौर हैं,
हुनर की कीजै हिमायत, तरक्क़ी का फिर दौर है ।
पता भी है ग़र जो तुझे, ना बताने का ये दौर है,
इल्म हो या फिर नसीहत, छुपाने का ये दौर है ।
निभ रहीं जूनी खतायें, तारीख जो निगाहे गौर है,
सलामत रहे हाफ़िज़े खुदा, मशक्कतों का दौर है ।
ख़ता किसी की नहीं यहाँ, समझाने का ये दौर है,
दुआ उस्ताद सयानों की, आजमाने का ये दौर है ।
मुआफ़ हर ख़ता क्यूँ न हो, वजह क़ाबिले गौर है,
ख़ताओं का है मुल्क ये, ख़ताओं का ही ये दौर है ।
ख़ता एक तेरी भी खुदा, बताने का ज़रा दौर है,
आज़ादी जो की अता तूने, बचाने का ये दौर है ।
' रवीन्द्र '
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