बा-वास्ता ग़म कोई,
कोना-ए-दिल,
अदने में रहता है,
शहर में हर शख़्स,
बेसब्र -ओ- बेसबब,
सज़दे में रहता है ।
बे-ज़ार हुई मिन्नतें,
जल गयीं हसरतें,
गिला तेरी हुकूमत से,
कैसे कहें हम दुआ,
फ़रिश्ता-ए-अमन जहाँ,
सदमे में रहता है ।
' रवीन्द्र '
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