Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दूरियाँ

 

 

दूरियाँ,
हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

दूरियाँ,
ना दिलों की दूरियाँ,
दूरियाँ,
कुछ दिनों की दूरियाँ ।
. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

थाम के रखना तुम्हीं,
याद के धागे यूँ ही,
हो जाये ना ज़ाहिर कहीं,
मन की कमज़ोरियाँ ।
. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

याद ना जाये,
कुछ भी ना भाये,
माना है मुश्क़िल,
मिलन की दुशवारियाँ ।
. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

आती रहेगी सदा,
मेरे दिल की सदा,
गुज़रेगी लम्हों में,
वक़्त की बरज़ोरियाँ ।
. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

रहना नहीं आसां,
बा-वफ़ा हरदम यहाँ,
देनी भी पड़ती है,
इश्क़ में क़ुर्बानियाँ।
. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

 

बसी हुई साँसों में,
ज़ुल्फ़ की तेरी खुशबू ,
सुलगती है ज़ेहन में,
यादों की चिंगारियाँ ।
. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

पास मेरे नाकामी,
तन्हाई का आलम भी,
हो रहा मशरूफ़ ज़माना,
मिट रही अब दूरियाँ ।

. . दूरियाँ, हैं यहाँ मज़बूरियाँ ।

 

 

 

 

 

" रवीन्द्र "

 

 

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