Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ईद मुबारक़

 

दर्द-ओ-गम के सिमटते बाज़ार में है,
वो आँख का आँसू मेरा इंतज़ार में है ।

 

ढ़ह न सकेगी बुनियाद खुशियों की,
वो आँख का आँसू मेरा ख़ुमार में है ।

 

उस के दम से रौनक है मेरी दुनिया,
वो आँख का आँसू मेरा दीदार में है ।

 

निकलेगा खा कर वजह है देरी की,
वो आँख का आँसू मेरा इफ़्तार में है ।

 

लो हो गयी मुबारक़, ईद ज़माने को,
वो आँख का आँसू मेरा रफ़्तार में है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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