Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इक ख़्याल

 

 

अये दिले- नादाँ, ख़्याल आया है,
नशा सा है हरदम, क्यूँ ये छाया है ।

 

फ़ूल खिलते हैं , फिर बिखरते हैं,
रस्म -ए-गुलशन ये, क्यूँ बनाया है ।

 

ये फ़िज़ां महकी, हवा भी है बहकी,
मुअत्तर साँसों पे, आ कौन ठहरा है ।

 

अभ्र क्यों नम है, इसको क्या ग़म है,
कौन ये फ़लक पे, कस - मसाया है ।

 

गम-ओ-ग़ुरबत है, हाल -ए-गर्दिश है,
नज़्म-ए-रुसवाई, कौन गुनगुनाया है ।

 

जोशो-हिम्मत है, कब तलक ख़म है,
दिल बुझा जब से, तब क्यूँ ज़ाया है ।

 

दिल मचलते हैं, फिर सँभलते हैं,
क्यूँ बशर ने यूँ, हर दिल जलाया है ।

 

रूह घायल है, किस की क़ायल है,
कौन है जिसने , ज़ुल्म ये ढ़ाया है ।

 

कौन है दिल में, ये क्या इशारा है,
गुफ़्तगू है कैसी, ये क्या नज़ारा है ।

 

क्या इबादत है, किस की सोहबत है,
अंज़ामे-क़ुर्बत क्या, किसी ने पाया है ।

 

कुछ अक़ीदत है, ये भी हक़ीक़त है,
क्यूँ ये सज़दे में, हुआ हुस्न सारा है ।

 

दिलक़शी क्या है, ये आबरू क्या है,
क्यूँ नज़र पे हसीं, ये कुफ़्र छाया है ।

 

ज़ुस्तज़ू क्या है, रूह क्यूँ प्यासी है,
इश्क़ दरिया है, इसपे क्यूँ पहरा है ।

 

ज़िन्दगी क्या है, ये अस्र भी क्या है,
लम्हा इश्क़ का, क्यूँ ख़ुल्द सारा है ।

 

बशर ये चलती है, तो रोज़ ढ़लती है,
क्यूँ बदलती फिर, रूह की काया है ।

 

लोग जो मिलते हैं, दौर भी चलते हैं,
कौन है साक़ी जो, सबका प्यारा है ।

 

अये दिले - नादाँ, कौन हमसाया है,
जिसकी ख़ातिर ये, ख़्याल आया है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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