Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक शाम

 

ज़िन्दगी इश्क़ का, पयाम सिर आँखों पर,
पिये जा भर भर के, जाम सिर आँखों पर ।

 

ज़िस्मो- जां देकर, रूह ने बसाया था कभी,
इश्क़ में उजड़ने का, पैग़ाम सिर आँखों पर ।

 

तबस्सुम को तरसती, ये खुश्क़ आँखें मेरी,
ये बेरुखी का तेरी, अहसान सिर आँखों पर ।

 

ना हो सके क़ाबिल, सनम की मुहब्बत के,
ये नज़र का तेरी, इल्ज़ाम सिर आँखों पर ।

 

झुका तो 'रवि' ताउम्र, तेरे दरबार में रहेगा,
हो ज़िन्द में जब भी, शाम सिर आँखों पर ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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