Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फ़रियाद

 

जागी जो हसरतें, नूरे- हक़ीक़त में,
खोई थी ख़्वाबों में, वो बहार गयी ।

 

ख़त्म जद्दो-जहद, दिलो- ज़हन की,
जीता फिर ज़ेहन, दिल की हार हुई ।

 

रोज़ फिर रहा, परेशां तेरे दुनिया में,
मोहलत मिली लम्हों की, बेकार हुई ।

 

ख़्वाहिश, जहाँ -ओ- जुनूँ , दोनों की,
परस्तिश अहले-करम, तेरी बेदार हुई।

 

भुला सकें हम, नाशाद हर अफ़साना,
फ़रियाद, फिर वही , तेरे दरबार गई ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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