अतीत से बंध कर, होती गुज़र नहीं,
इश्क़ के बिना , खिलती बशर नहीं ।
शिकवा-ए-दिल का, हुआ ज़िक्र नहीं,
तबस्सुम लबों पर, जबरन अगर नहीं ।
बिगड़ती जो रही, कहो रहगुज़र नहीं,
मिला किये बग़ैर, लुत्फ़-ए-नज़र नहीं ।
आरज़ू अज़ीज है, तुम बिन मगर नहीं,
रहा ख्यालों में, फर्ज़ क्या सिफर नहीं ।
हो खिताबे- अज़ल, मिली उमर नहीं,
नाम रहे जुबां पर, होती फ़िकर नहीं ।
' रवीन्द्र '
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