Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फ़िक्र

 

 

अतीत से बंध कर, होती गुज़र नहीं,
इश्क़ के बिना , खिलती बशर नहीं ।

 

 

शिकवा-ए-दिल का, हुआ ज़िक्र नहीं,
तबस्सुम लबों पर, जबरन अगर नहीं ।

 

 

बिगड़ती जो रही, कहो रहगुज़र नहीं,
मिला किये बग़ैर, लुत्फ़-ए-नज़र नहीं ।

 

 

आरज़ू अज़ीज है, तुम बिन मगर नहीं,
रहा ख्यालों में, फर्ज़ क्या सिफर नहीं ।

 

 

हो खिताबे- अज़ल, मिली उमर नहीं,
नाम रहे जुबां पर, होती फ़िकर नहीं ।

 

 

' रवीन्द्र '

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