Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ग़ाफ़िल-जहाँ

 

ना फ़र्ज़-ए-मुहब्बत निभाते,
हम भी तुम्हें भुला पाते,
… काश तुम पराये हो जाते ।

 

 

नज़र अपनी उठा पाते,
सुकूँ दिल का जरा पाते,
… काश तुम पराये हो जाते ।

 

 

पाकर होश, गवांये अपने,
आशियाँ फिर नया बनाते,
… काश तुम पराये हो जाते ।

 

 

ख़ता-ए-दिल हम बताते,
ज़माने को भी समझाते,
… काश तुम पराये हो जाते ।

 

 

फ़साना-ए-ज़फ़ा सुनाते,
न ग़ाफ़िल-जहाँ कहलाते ।
… काश तुम पराये हो जाते ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ