सर्व विघ्न रहित काज सकल,
नमन तुम्हें हे पार्वती - ललन.
दृष्टि अपार किंचित लघु नयन,
कर्ण विशाल सर्व - मंत्र श्रवन.
दीर्घ नासिका सूंघे गंध विघनन,
आशीष दायक सदा मंगलकरन.
रसना निर्लिप्त कहे मधु-वचन,
मोदक प्रसाद सब सुख -करन,
निर्विघ्न पूर्ण हो लौकिक यजन.
जय गणपति जय शिव - नंदन.
मंगल कर्म रहे अभी शेष करन,
पर्वहेतु मात्र गणेश तव विसर्जन.
तव प्रेरणा प्रेरित -
' रवीन्द्र '
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