बोझ सलीब का खुद लिए
गिर कर उठे और फिर गिरे,
पहुँच कर मंजिल पे अपनी ,
पिता को तब उपालंभ दिए,
क्यूँ छोड़ दिया मुझे अकेला,
दुःख से भरे इस संसार में,
पी सकता नहीं दर्द इतना ,
करुणा दया के व्यापार में.
माफ़ कर देना तुम सभी को,
सबब कुछ भी नहीं है इनको,
क्या कर रहे पता ना इनको,
क्षमा पाने का हक़ है इनको,
दर्द दुनियां का घटा दो,
रोशनी सब को दिखा दो,
प्रेम करना इन्हें सिखा दो,
अब मुझे खुद में मिला लो,
'ईशु' पाप सबके सह लिए,
कष्ट सबके तुम हर लिए,
रोम का अपराधी बन कर,
पावन 'क्रास' को कर दिए.
'रवीन्द्र'
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