Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गुज़ारा

 

रश्क़ करना, इश्क़ को गवारा नहीं,
अदावत इश्क़ से, शौक हमारा नहीं ।

 

 

मुहब्बत हो गयी है, ग़र तन्हाईयों से,
देता किसी और को, ग़म सहारा नहीं ।

 

 

रोज आता है वो, सिकन्दर की तरह,
नसीब ने अबतक, उसे दुत्कारा नहीं ।

 

 

गुज़रता चला गया, वक़्त की मानिंद,
चिलमन से लपेटा, कोई नज़ारा नहीं ।

 

 

उम्मीद रखी, कि हमारी याद आएगी,
अफ़सोस ये था, किसी ने पुकारा नहीं ।

 

 

ना बन सकेगी, ग़ज़ल अब तो 'रवि'
बेताब दिल से न हों, तो गुज़ारा नहीं ।

 

 

 

' रवीन्द्र ',

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