Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हरज़ाई

 

 

दुनिया की रीत भुलाके, राह पड़ी दिखाई,
बात समझ में आई, पर दुनिया हुई पराई ।

 

रिश्तों की पूंजी थी, जो बीच सफ़र गवाईं,
राह चला मंज़िल की, मेरे साथ चली तन्हाई ।

 

अनजानी राहों पर, मुश्किल थी बन आयी,
उजियारा था मन का, तो दूर हुई कठिनाई ।

 

है ता-उम्र का ताल्लुक, याद न पहले आयी,
प्रीत लगी जब तुझसे, शक़ की ना परछाई ।

 

कानों में मदिरा घोले, दिल ने साज़ सजाई,
अँधियारी गलियोँ में, बजने लगी शहनाई ।

 

नज़रों का भरोसा तेरी, तू न हुआ हरज़ाई,
साथ चला तू मेरे, मंज़िल थी बीच बनाई ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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