दुनिया की रीत भुलाके, राह पड़ी दिखाई,
बात समझ में आई, पर दुनिया हुई पराई ।
रिश्तों की पूंजी थी, जो बीच सफ़र गवाईं,
राह चला मंज़िल की, मेरे साथ चली तन्हाई ।
अनजानी राहों पर, मुश्किल थी बन आयी,
उजियारा था मन का, तो दूर हुई कठिनाई ।
है ता-उम्र का ताल्लुक, याद न पहले आयी,
प्रीत लगी जब तुझसे, शक़ की ना परछाई ।
कानों में मदिरा घोले, दिल ने साज़ सजाई,
अँधियारी गलियोँ में, बजने लगी शहनाई ।
नज़रों का भरोसा तेरी, तू न हुआ हरज़ाई,
साथ चला तू मेरे, मंज़िल थी बीच बनाई ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY