Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हसरतें

 

मैंने जब कभी देखा तुझे, एक नज़र आरज़ू भर के,
लौट आया हूँ चश्मतर, इश्क़ अदद रुसवा कर के ।

 

धुआँ धुआँ सी हसरतें हैं, हया से है झुकती नज़र,
कुछ दुआऐं थी पास मेरे, बह रहीं अब हवा बन के ।

 

एक चाहत तेरी हुई तो, हैं लाख अरमां ख़ाक मेरे,
मौज़ दरिया में उठी तो, उतर गई हर बार चढ़ के ।

 

चुभन हो रही हल्की हल्की, फिर खलिश होगी जवां,
जब आँख में तस्वीर होगी, देखना तुम अश्क़ भर के ।

 

ये इश्क़ का पैमाना मेरा, किसी शराब से भरता रहा,
देखना 'रवि' इसको कभी, आतिश-ओ-आब भर के ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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