मैंने जब कभी देखा तुझे, एक नज़र आरज़ू भर के,
लौट आया हूँ चश्मतर, इश्क़ अदद रुसवा कर के ।
धुआँ धुआँ सी हसरतें हैं, हया से है झुकती नज़र,
कुछ दुआऐं थी पास मेरे, बह रहीं अब हवा बन के ।
एक चाहत तेरी हुई तो, हैं लाख अरमां ख़ाक मेरे,
मौज़ दरिया में उठी तो, उतर गई हर बार चढ़ के ।
चुभन हो रही हल्की हल्की, फिर खलिश होगी जवां,
जब आँख में तस्वीर होगी, देखना तुम अश्क़ भर के ।
ये इश्क़ का पैमाना मेरा, किसी शराब से भरता रहा,
देखना 'रवि' इसको कभी, आतिश-ओ-आब भर के ।
' रवीन्द्र '
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