Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हासिल

 

 

झूमती बहार, इठलाती फिज़ां,
धड़कती औ' बरसती बदलियाँ,
मस्ती भरी है, हर शय यहाँ,
है इन नशीली हवाओं में क्या ।

 

महकती मदिर सी खुशबू तेरी,
आवाज़ है साज़ों की सुर भरी,
तसव्वुर की सारी ये कहकशाँ,
है मुहब्बत की पनाहों में क्या ।

 

है हर अदा में तेरी साहिरी,
इश्तियाक़ से भरी बातें तेरी,
बदल ना जाये फ़ितरत मेरी,
है तेरी इन निगाहों में क्या ।

 

तू दूर है, तो अफ़सोस मुझे,
ग़र पास है तो, इस सोच में,
तू जो नही , कामिल अगर,
हासिल कहें, जीवन में क्या ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

 


कहकशाँ= Galaxy, कामिल= perfect

 

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