कशिश-ए-इश्क़, सदियों पुरानी है,
रुकता नहीं वो, कोशिशें बेमानी हैं,
बहना है जीवन, रुके नाम पानी है,
मिलेगा समंदर, हसरते-ज़िंदगानी है ।
तर है वो इश्क़ में, गिला ना करता,
बहता हुआ वो, है हर ज़ख्म सहता,
घिसी पत्थरों पे, उसकी जवानी है,
मिलेगा समंदर, हसरते-ज़िंदगानी है ।
धूप ने देखो उसका बदन सुखाया,
बदली ने देखो बदल दी है काया,
बरसने से उसके, वसुधा सुहानी है,
मिलेगा समंदर, हसरते-ज़िंदगानी है ।
' रवीन्द्र '
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