बहुत मन था रोने का,
मैं रो ना सका,
किसी और के गम को
मैं सह न सका ।
बहुत याद आईं,
गुस्ताख़ इंसानी खतायें,
इलज़ाम कुदरत को
मैं दे न सका ।
तकनीक-ए-जानकारी से,
भरी ज़माने की झोली,
खबर खुद के लिये,
मैं पा ना सका,
हो गया नामुमकिन,
मिज़ाजे मौसम समझना,
वज़ह इसकी खुद को,
समझा ना सका ।
' रवीन्द्र '
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