मुहब्बत पे अपनी, ये इल्ज़ाम आने लगा,
हर वक़्त अब ज़ुबाँ, तेरा नाम आने लगा ।
अज़ब सा दस्तूर है, मयकदा-ए-इश्क का,
हर तरफ है साकी, नजर जाम आने लगा ।
तन्हाई ओढ़ लेती, चुनरिया सुर्ख हिज्र की,
समझ कर श़मा, परवाना पास आने लगा ।
रेग के हर कण बसा, वक़्त का हर पल तेरा,
ख़ला भी खाली नहीं, ये अहसास आने लगा ।
महक में तसव्वुर मेरा, गुल हैं तेरे ख़्याल के,
मुअत्तर ना साँसे मेरी, ये इल्ज़ाम आने लगा ।
' रवीन्द्र '
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