Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इल्तिज़ा

 

सुकून-ए-दिल, तेरे आने से,
बचता है क्या, तेरे जाने से ।

 

 

लाख़ तोहमद, एक फ़साने से,
ग़ायब ग़म , तुझे बुलाने से ।

 

 

खिली कली, तेरे मुस्कराने से,
बहारे- चमन, खिलखिलाने से ।

 

 

ख़त्म मुश्किल, नज़र आने से,
मुसर्रत मुश्तक़िल, ठहर जाने से।

 

 

लेना है क्या , इस ज़माने से,
आ भी जा , किसी बहाने से ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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