देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।
इश्क़, वफ़ा - ओ - आपसदारी,
है नूरे - मज़हब का पैगाम यही,
खिंची खिंची क्यूँ चहर- दिवारी,
क्यूँ शज़रे-उलफ़त पे प्यार नहीं ।
नफा मुनाफ़ा, . .है हिस्सेदारी,
बस नफ़रत का इलज़ाम नहीं,
क्यूँ कदम कदम पे पहरेदारी,
क्या फ़ितरत में ईमान नहीं ।
देख रहे क्यूँ . . मुझको ऐसे,
क्या मुझको तुमसे प्यार नहीं ।
' रवीन्द्र '
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