यूँ तो मौजूद है हर शख्स में,
पर दिखती नहीं ईमानदारी ।
जगाते हैं अक्सर पराये दिल में,
खुद की जगती नहीं ईमानदारी।
कहने भर को बस है बेशकीमती ,
कौड़ियों में बिकती ईमानदारी ।
जो भी दिखता है बड़ा जितना,
उतनी सस्ती उसकी ईमानदारी ।
ख्यात होना है असली मक़सद,
पाने का ज़रिया है ईमानदारी ।
असल जिंदगी में तो यारों ,
मुफ़लिसी का है सबब ईमानदारी ।
कुछ हैं जो करते हिसाब बराबर,
बची जिनमे रब से वफ़ादारी ,
खुदा मुफ़लिसी को रखना कायम,
जिसके दम से है महफूज़ ईमानदारी ।
' रवीन्द्र '
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