Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंतज़ार

 

जो इक ख्याल तेरा, जीने का बहाना हो गया,
तसव्वुर में अक्स तेरा , हर अफ़साना हो गया ।

 

काबिज़ है नक्श तेरा, जहन के हर हिस्से पर,
लगता है तसव्वुर भी , तेरा दीवाना हो गया ।

 

मुसाफ़िर का है ये सफ़र, न है किसी की ख़बर,
करें अब किसको याद, जहां ये बेगाना हो गया ।

 

करेंगे याद मरते दम तक, कहा था ये एक बार,
निभाया मर कर भी, वादा जो पुराना हो गया ।

 

इंतज़ार पिघलती शमा, करार परवाना हो गया,
अब आ भी जा, लुत्फ़े-दीदार को ज़माना हो गया ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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