- 'इंतजार'
बे-परवाह हूँ मैं किसी और की सोच समझ या दलीले-तहरीर से.
बख्शा है मुझे ये लज़ीज़ नजराना, मालिक ने मेरे ही नसीब से,
जिंदगी जिसे मिली जितनी , उसका बस उतना ही अधिकार है,
है मौजूद अभी वो मालिक इसमें, उसके चले जाने का इंतजार है.
ख़ता थी शौके-खाना ख़राब की, वो हमसे खफा हो बैठे,
सफ़ाई भी ना ये मंजूर उनको, हम सारे शौक गवाँ बैठे.
तकदीर बदलना चाहता हूँ ,
बदल न पाया हूँ अब तक ,
सबल जो बनना पड़ता है,
मुझे हर एक बदल से पहले ।
नफ़रत की ये दुनिया , तेरे काबिल न थी,
हुक्मरानों की नज़र , क़ैदे बंदिश जो थी,
दामिनी सी चमकी , मर्ज़ तो दिखा गयी,
दर्द दूर करने की मगर, उनकी मर्ज़ी न थी ।
चलता नहीं है ज़ोर बेगमों पे चाहे तो तू आजमाले,
छोड़ दें क्यूँ ना ग़मों को, और खुद को बेग़म करलें.
ऐ मालिक, तेरी रहनुमाई का ये सिला है,
ना है कोई रुसवा, ना ही किसी से गिला है.
रुसवा - नाराज़, गिला - complaint , सिला - प्रतिफल
कुछ लोग बुतपरस्ती में यकीं नहीं रखते,
हैरत है कि हज़ से भी परहेज़ नहीं करते.
बुतपरस्ती- मूर्ति पूजा, परहेज़ - to avoid, हज़ - Holy pilgrimage
कोई बताये तो मुझे, किस ज़ुर्म की ये सज़ा पाई है,
कि बदलती हैं सिर्फ़ जेलें , ना जाने कब रिहाई है.
जेलें - The bodies, रिहाई - मुक्ति, Liberation
तलाशने पर भी ना मिला तू , तो नाखुदा की तलाश की ,
नाखुदा तो मिला मगर, उसे भी बस तेरी ही तलाश थी.
- 'कुव्वत'
कुव्वत तो थी ऐ तूफान , तुझे थाम लेने की मगर,
शुक्रिया खुदा का ऐन-वक़्त तेरा रुख ही बदल गया.
Although, I was having the determination to face the storm of difficulties,
yet, thanks God the difficulties moved away just before.
Means- If you are determined to face difficulties they will move sideways and one can be through.
- ' निजाम '
तेरे निजाम में कोई ख़ामी नहीं मिलती,
यूँ किसी को बे-वजह फाँसी नहीं मिलती.
one has to look back his own deeds
instead of crying and cursing.
- 'गलत - फहमी'
सजदा करता है ज़माना खुदा को, किसी इन्सां को नहीं,
समझ ले तू है उसकी गोद में, मगर खुद में खुदा नहीं.
हिफाज़त करी लाख , फिर भी आंशियाँ लुट गया,
बंद मुट्ठी से जैसे कि, कोई आंसमा फिसल गया,
ढूंढा बहुत ज़माने में , मगर ना मिली मुहब्बत,
खुद ही में खोजा तो, मुहब्बतों का जहाँ मिल गया.
' सुनी सुनाई '
अब वक़्त गुज़रता है खुद से,
मुझे फ़ुर्सत कहाँ अब तुझसे ,
सुनी सुनाई थी जो अब तक,
महसूस हुई वो रहमत जब से ।
हुस्न बेजान सी हस्ती है, इजहार-ए-इश्क करती है,
खोई हुई मौजें तभी तो, साहिल पे सर पटकती हैं।
- ' दवा '
चुपके से इस तन में घर करती है,
व्याधि धीरे से जिसे जर करती है,
दोस्ती तो है दवा, हर नफरत की,
धीरे से जिस दिल ये घर करती है ।
- ' ज़ुल्फ़ '
ये ज़ुल्फ़ जो लहराई तेरे काँधे पर, दिल में मेरे हुई सरसराहट क्यूँ है,
झटकी अदा से जो तूने ये अलकें, छटपटाते इस दिल के अरमाँ क्यूँ हैं ।
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