Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जय गोवर्धन

 

गिरिधर गिरि कनि पे उठायो,
शेस जिमि धरनि सिर धारो ।

 

ब्रजकिशोर संग लाठ लगायो,
सब हर्षित निज धर्म निभायो ।

 

इन्द्र कुटिल घुटनों पर आयो,
छमा माँग अभय वर पायो ।

 

धेनु बछल अनुपम सुख पायो,
गोपिका आरत थाल सजायो ।

 

जै गोविन्द जै गोपाल कहायो,
नंदसुत नाम गिरिधर का पायो ।

 

 

जय गोपाल जी की,

सादर समर्पित,

' रवीन्द्र '

 

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