तू दिखता तो नहीं लेकिन , अक्सर तेरी रहमत दिखती है,
करूँ ये कैसे मैं बयाँ , क्यों तेरी मुझे जरुरत रहती है,
जरुरत के रद्दों से अक्सर, तेरी शकल की तामीर करता हूँ,
इतनी सी मेहनत है, फिर तेरी रहमत का दीदार करता हूँ,
रहमत की ये पाक नूरानी मूरत, अब इस दिल में रखता हूँ,
फिर जब जी में आये, दिल ही दिल में तुझे सजदा करता हूँ,
सिमट जाती हैं जरूरतें मेरी , लेकिन ये इंसानी फितरत है,
दयार है अब तेरे दीदार की, तेरी रहमत की फिर जरुरत है.
' रवीन्द्र '
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