बदली है आप ने, सियासत की फ़िज़ा,
मिलेगी फिर भी , ना हक़ीक़त की दवा,
होता हर रोज़ यहाँ, ज़म्हूरियत का नशा,
फिर एक बार चलो, दें हसरतों को हवा ।
' रवीन्द्र '
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बदली है आप ने, सियासत की फ़िज़ा,
मिलेगी फिर भी , ना हक़ीक़त की दवा,
होता हर रोज़ यहाँ, ज़म्हूरियत का नशा,
फिर एक बार चलो, दें हसरतों को हवा ।
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