पैगाम कोई
मुहब्बत का,
लफ्ज़े चिलमन
से झलक आये,
गहर इतनी कि
समन्दर भी शर्माये,
अहसास आँखों में
नमी बन उतर आये,
जाल अल्फाज़ वही
शायरी सा नज़र आये।
' रवीन्द्र '
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पैगाम कोई
मुहब्बत का,
लफ्ज़े चिलमन
से झलक आये,
गहर इतनी कि
समन्दर भी शर्माये,
अहसास आँखों में
नमी बन उतर आये,
जाल अल्फाज़ वही
शायरी सा नज़र आये।
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