जियें तन्हा कैसे, अज़ब हालातों में,
ज़िक्र होता है तेरा , तमाम बातों में ।
बहुत अफ़सोस है, उस अफ़साने का,
गुज़र रहा जो अब, दिन-ओ-रातों में ।
दो लफ्ज़ो की दूरी, पल पल मज़बूरी,
अश्क़ तो नहीं हैं, पर प्यास आँखों में ।
प्यार में अदावत, चाहतों की बगावत,
जवाँ हुई मुहब्बत , चंद मुलाक़ातों में ।
तन्हाई का आलम, मौसिक़ी का समां,
आ जाओ तो जरा, सांसों के साज़ों में ।
जियें तन्हा कैसे, अज़ब हालातों में,
ज़िक्र होता है तेरा , तमाम बातों में ।
' रवीन्द्र '
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