Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ज़िक्र

 

 

जियें तन्हा कैसे, अज़ब हालातों में,
ज़िक्र होता है तेरा , तमाम बातों में ।

 

 

बहुत अफ़सोस है, उस अफ़साने का,
गुज़र रहा जो अब, दिन-ओ-रातों में ।

 

 

दो लफ्ज़ो की दूरी, पल पल मज़बूरी,
अश्क़ तो नहीं हैं, पर प्यास आँखों में ।

 

 

प्यार में अदावत, चाहतों की बगावत,
जवाँ हुई मुहब्बत , चंद मुलाक़ातों में ।

 

 

तन्हाई का आलम, मौसिक़ी का समां,
आ जाओ तो जरा, सांसों के साज़ों में ।

 

 

जियें तन्हा कैसे, अज़ब हालातों में,
ज़िक्र होता है तेरा , तमाम बातों में ।

 

 

 

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ