Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिन्दगी और जिया

 

पग पग चलती ये जिन्दगी,
कतरा कतरा खुद की कशी,
हर लम्हा गुजरा जो याद में,
खुदा जाने क्या है खुदकशी ।

 

सच्ची तुमसे दिल की लगी,
बाकी सब तो बस दिल्लगी,
समझ ले किस्मत की करनी,
खुदा जाने क्या है खुदकशी ।

 

तकदीर पे अपनी हक सदा,
बदल देगा तू क्या ये जहां,
सोच में जरा सी तब्दील की,
खुदा जाने क्या है खुदकशी ।

 

रास्ते की उड़ती धूल हम,
हालात से रहे मजबूर हम,
जिन्दगी हमेशा बंधन बँधी,
खुदाजाने क्या है खुदकशी ।

 

मुक्ति ना मिलेगी यूँ कभी,
गम मिलेगा अपनों को भी,
लिबास तो तूने बदला 'जिया'
क्या रास आयेगी ये खुदकशी ।

 

 

Rest in Peace ' Jiya Khan '

 

 

' रवीन्द्र '

 

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