Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिन्दगी या शतरंज

 

ये जिन्दगी क्या है,
एक तमाशा है,
या फिर खेल है,
खेल एक शतरंज का,
जिसमें दिखते हैं लोग,
प्यादों की तरह
खड़े हुए
मोहरों की तरह
बंदिशों में बंधे,
गुलामों की तरह.

 

हिल सकते नहीं,
जब तलक
हिलाए न कोई,
मजबूर हैं सब
सर्कस के
जमूरे की तरह.
बंधे हुए हैं सभी,
अपनी चाल के उसूल से,
हिलता न कोई,
खिलाडी की मर्जी के बिना.

 

मज़े की है ये बात
कि शह और मात
आप खिला भी सकते हैं
और खा भी सकते हैं.
मुख़ालिफ़ के मोहरों को
हिला सकते नहीं बदस्त
हटा सकते हैं मग़र
चालों के दम बेदस्त.

 

मुख़ालिफ़ के हर खाने पर
अपनी नज़र रखिये,
ज़ाहिर न हो आपकी नज़र
बस उसकी नज़र पर नज़र रखिये.

 

जोड़ दो प्यादों कि ताक़त
साथ में ऊँट हाथी कि ताक़त
पर थोड़ी सावधानी बरतिए
और वजीर की फिक्र करिए.
हर उस प्यादे पर
जिसे आप चाहें हिलाना
ज़ोर एक अधिक रखिये
या फिर उसे फ़तेह करिए,
बस इतना इल्म रहे
ज़ोर मुख़ालिफ़ के मोहरों का
अपने प्यादों पर कम रहे.

 

खूबसूरती यह भी है कि
फ़तेह के लिए
मारना जरूरी नहीं.
मुख़ालिफ़ के इलाक़े में
वज़ीर भेज कर
साथ में बचाव को
ऊँट भेज कर
या फिर घोड़े के पीछे
वज़ीर भेज कर
उसके शहंशाह को
आप डरा भी सकते है
और हरा भी सकते हैं.
कर सकते हैं मजबूर
हिलने के लिए
या फिर न हिलने के लिए.
कुछ खेल के धुरंधर भी हैं
जो खड़े होते हुए भी
प्यादों की जमात,
दे देते हैं शह
और कर सकते हैं मात.

 

ये शतरंज का खेल है
या खेल है जिंदगी का
जिसमें है शत शत रंज
न जाने कितने गम
दिए हुए दूसरों के
या फिर कुछ
अपनी ही चालों से
खुद हमने पायें हैं
फर्क सिर्फ इतना है
की मोहरें अनेक हैं
उनके चेहरों के
उनकी चालों के
रंग काले सफ़ेद हैं.

 

ख्यालात के हाथी ऊँट घोड़े हैं
जो जज़्बात के दम से दौड़े हैं
प्यादे अपने हैं या पराये
पहचानना मुश्किल है,
वज़ीर वफ़ा बदलते हैं
कायदों का क़त्ल करतें हैं
महज़ प्यादे ही नहीं
खाने भी रंग बदलते हैं.

 

कोई चाल का उसूल नहीं है,
समझो यही एक उसूल है,
चौसठ खानों की चौपाट नहीं,
अनगिनत खानों की बिसात है,
जिन्दगी मुश्किलों से नाशाद है,
जिसे भी देखो वो इस खेल में उस्ताद है.

 

जिन्दगी के ये मोहरे
चाल और चेहरे बदलते हैं,
हमारी चाल को देख कर
अपनी चाल बदलते हैं,
और कभी कभी तो
मुख़ालिफ़ के मोहरे भी
अपने मोहरों में बदलते हैं.
चाल की दिशा
या फिर पाला बदलते हैं.

 

आ मुख़ालिफ़ की चाल को
अपने अनुकूल कर लें
चाल अपनी चलें ऐसी
उसे चाल बदलने को मजबूर करलें.
ऐसी हो अपनी नीती
दुश्मन के दोस्त सरीखीं
तेरा रंज बने उसका ग़म
ख़ुशी उसकी तेरी ख़ुशी जैसी

 

रंजिशें सब ख़त्म हों
मुहब्बतों की हो बात,
इल्म की रवि-रोशनी हो
न शह हो न हो मात.

 

 

'रवीन्द्र'

 

 

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