Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कब तक

 

हर साँस पर नज़रें, हर कदम पर रहमत,
बोझ नवाज़िश का, मैं उठाऊँ कब तक ।

 

 

करता हूँ मैं वही , जो तुझे पसंद है,
क्या है तेरी रज़ा, समझ पाऊँ कब तक ।

 

 

बस एक लम्हा आकर, जी भर दीदार कर,
इश्क़ बेज़ुबां बा-अश्क़, मैं जताऊँ कब तक ।

 

 

वो फ़लक से उतरे , लगें हैं फ़रिश्तों से,
पा नक़्शे -पा पथ पे, पार पाऊँ कब तक ।

 

 

फ़रियाद को कहीं , शिक़वा ना समझें,
सोच कर हर दर्द को, मैं भुलाऊँ कब तक ।

 

 

( नवाज़िश= Kindness, favour )

 

 

 

' रवीन्द्र '

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