Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कैफ़ियत

 

 

सलामत कैफियत हर कदम देखते हैं,
कितनी हसरत से तुम्हें सनम देखते है ।

 

 

' मुहब्बत इनायत करम देखते हैं,'
तुम्हें साथ अपने सनम देखते है,
मुहब्बत इतनी तुमसे कसम से,
साथ तुम्हारा हर जनम देखते हैं ।

 

 

जुदा होके बाकी, न पहचान अपनी,
हस्ती है तुमसे ही , ये हम देखते है,
ख्यालों में होती जो सूरत तुम्हारी,
दामन में अपने ना गम देखते हैं ।

 

 

जलवा तुम्हारा है, सारे जहाँ में,
गाफिल कि इतना कम देखते हैं,
बयाँ कर गयीं, गिरी जो पलकें,
आँखों में उनकी शरम देखते हैं ।

 

 

राहें तुम्हारी, चैन-ओ- सुकूं की,
नज़रों में अपनी, भरम देखते हैं,
सिलवट खिज़ा की सारे जहाँ में,
बहारों में उनका करम देखते है ।

 

 

सज़ा खता की, कितनी कम सी,
है मासूम तेरा हर सितम देखते हैं,
हसीं है ज़िन्दगी तुम्हारे करम से,
ज़ेहन-ओ-जिगर में अमन देखते हैं ।

 

 

कहना है मुश्क़िल, सहे जो सितम हैं,
निगाहों में तेरी , हर कलम देखते है,
ना हो जाये रुसवा, मुहब्बत हमारी,
चाहत से यूँ सब को हम देखते हैं ।

 

 

सलामत कैफियत हर कदम देखते हैं,
कितनी हसरत से तुम्हें सनम देखते है ।

 

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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