Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

काज़ल

 

 

नटनी ने नट की,
नृत्य कराया है,
जीवन की वली ने,
कितना रुलाया है ।

 

 

 

जन्मों का अभेद्य,
दुर्ग बना पाया है,
सुदर्शन से चक्र से,
पार कौन पाया है ।

 

 

 

श्रृंगार आवरण में,
मुख रूप छुपाया है,
रसराज छवि को,
उर प्रान्त बसाया है ।

 

 

 

मुरली की धुन पर,
रास रचाया है
लाज का पहरा,
सुवास ने हटाया है ।

 

 

 

इन नैनों में आज,
कुछ ना समाया है,
चित्तचोर के तन से,
काज़ल जो चुराया है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ