Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कारोबार

 

बिक जाते है, अश्क़ यहाँ,
पर दर्द नहीं बिकता,
महकता फूल कागज़ का,
बे- मिसाल नहीं मिलता ।

 

 

वक़्त के साथ गुनाह का,
अहसास नहीं मिटता,
रूह की पाकीज़गी औ' ख़ुशी
का साथ नहीं मिलता ।

 


प्यार पैसे का चंद लम्हों का,
दर साल नहीं मिलता ।
दोस्त करे अग़र तिज़ारत,
दर्ज़ा-ए-ख़ास नहीं मिलता ।

 

 

दिखता है ये इंसानों में,
मगर परिन्दों में नहीं,
दिल अशर्फ़ियों के दम से,
खुशहाल नहीं मिलता ।

 

 

( तिज़ारत = व्यापार, बिज़नेस )

 

 

 

' रवीन्द्र '

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