उन्मत्त करे यह काव्य संस्कृति,
रखनी है मुझको, कृतव्य रति,
अहम जननी, मोह की कारक,
कंचन, कामिनी, यश की वृद्धि ।
' रवीन्द्र '
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उन्मत्त करे यह काव्य संस्कृति,
रखनी है मुझको, कृतव्य रति,
अहम जननी, मोह की कारक,
कंचन, कामिनी, यश की वृद्धि ।
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