कशमकश में हूँ,
क्या करूँ,
कुछ लिखूँ या
आगे बढ़ूँ ।
राह तेरी
सामने पड़ी,
मगर पाँव
बेडी पड़ी,
तोड़ दूँ ना
मैं कहीं,
तुमसे उलफ़त
जो बढ़ी ।
जंजीर है
ये फ़र्ज़ की,
दयार किसी के
दर्द की,
पाँव उठते
ही नहीं,
सोच भी
टलती नहीं,
प्यार तुझसे
बेपनाह,
ना बेनयाज़ी
की इन्तहां,
फिर बता
मैं क्या करूँ,
कुछ लिखूं
या आगे बढूँ।
कश्मकश में हूँ
क्या करूँ,
कुछ लिखूं
या आगे बढ़ूँ ।
लो कसम ये
तोड़ दी,
कश्मकश भी
छोड़ दी,
लिख दिया है,
हाले दिल,
राह चल के
फ़र्ज़ की ।
नहीं मुहब्बत में
कोई कमी,
हर हाल में
ये साथ ही,
राह चल के
फ़र्ज़ की,
प्यार की
मंजिल मिली ।
' रवीन्द्र '
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