सर्दी गर्मी और ये बारिश ना होती,
मिज़ाजे मौसम की तारीफ़ न होती ।
अश्कों से अबला न दामन भिगोती,
ग़र ज़ब्र की जहाँ में हुकूमत न होती ।
दुनिया में हर तरफ़ परेशानी न होती,
भूख- हाकिम ग़र सिर्फ रोटी की होती ।
दर्द औ' गम इश्क़ की मंजिल अनोखी,
ना हो सही तो क्या मुहब्बत न होती ।
है गुनाह होना सुखी दर्द दूसरे को देके,
इल्म ये होता तो यहाँ जन्नत न होती ।
दुनिया है मौला कायल तेरे कायदे की,
न देता दर्द तो क्या ये इबादत न होती ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY