ज़िन्दगी जो अता की तूने, तो ये सदा तेरी है,
मरज़ी से ग़र जो जी मैंने, तो ये ख़ता मेरी है ।
सुबह थी शबनम-ए-गुल, ढ़ली फिर नरम धूप,
हसीं नहीं जो शामे- सफ़र, तो ये सज़ा मेरी है ।
मेहरबां ना मुझ को मिला, बस एक तेरे सिवा,
आरज़ू बसी इस दिल नहीं, तो ये रज़ा मेरी है ।
हुआ है यादों का सफ़र, फ़िज़ा -ए-ईज़ाओं में,
अबतलक रंजूर है सज़दे में, तो ये सदां मेरी है ।
हुआ ना मुस्तक़िल, मशरुफ़ ज़माने का चलन,
लड़खड़ा के संभल जाती है, तो ये अदा मेरी है ।
अज़ब बेरूखी तेरी, वज़ह से भी है अंजान 'रवि',
मुंतज़िर है तू सदा, है ख़बर, तो ये बज़ा मेरी है ।
' रवीन्द्र '
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