Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ख़बर

 

मेहनत से जो कमाया उसे, सोच समझ कर खर्च करता हूँ,
जिंदगी खैरात नहीं है ये सोच के, तेरी ही नज़र करता हूँ.

 

हों लाख आफताब रोशन उनके घर, है क्या मुझको पड़ी,
ना बुझे अब ये जलता दिया, मैं बस इसी में सब्र करता हूँ.

 

किसको मिलती है फुर्सत अब , तेरे मयखाने में जाने की,
जो बख्श दी तूने थोड़ी रौनक, उसी में बस गुजर करता हूँ.

 

कोशिशें तो की मैंने पुरजोर, मगर तू कहीं दिखाई ना दिया,
अब जो मिल जाये कोई भी पीर, तो तेरा ही दीदार करता हूँ.

 

मुझे है बस एक तेरा ही आसरा, और ये तुझको भी है पता,
फिर भी 'रवि' ना जाने क्यूँ, तुझे हर रोज़ खबर करता हूँ.

 

 

 

 

'रवीन्द्र'


मुंबई

 

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