आते तो हैं वक़्त पे सही,
पल भर में जाते हैं निकल,
रुकते नहीं रोके से ख़याल,
कहीं बना दूँ न इसे ग़ज़ल ।
अहाता-ए-दिल को नमी औ'
परेशां रूह को देते हैं सुखन,
मांग कर लफ़्ज़ों से पनाह,
जीते कुछ लम्हों का जीवन ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
आते तो हैं वक़्त पे सही,
पल भर में जाते हैं निकल,
रुकते नहीं रोके से ख़याल,
कहीं बना दूँ न इसे ग़ज़ल ।
अहाता-ए-दिल को नमी औ'
परेशां रूह को देते हैं सुखन,
मांग कर लफ़्ज़ों से पनाह,
जीते कुछ लम्हों का जीवन ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY