डोर से बँधा हूँ , कैसे भुला दिया,
अज़नबी शोर ने, मुझे बुला लिया,
खिलौना तेरा, खेलता हूँ जिससे,
याद के सहारे, जीवन बिता दिया ।
' रवीन्द्र '
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डोर से बँधा हूँ , कैसे भुला दिया,
अज़नबी शोर ने, मुझे बुला लिया,
खिलौना तेरा, खेलता हूँ जिससे,
याद के सहारे, जीवन बिता दिया ।
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