Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख़ोज

 

किनारों ने कभी, सहारा ना दिया,
समंदर ने कभी, किनारा न किया,
लहरें ये मन की, किसे खोजती हैं,
दरिया है अंदर, नज़ारा ना किया ।

 

 

' रवीन्द्र '

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