जलाये अरमां, तुझे पाने के लिये,
मांगी है मसर्रत, ज़माने के लिये ।
आये बहार बन के, ना हसरत है,
क़तरा काफ़ी, मुस्कराने के लिये ।
खोई ख्वाबों में, अक्स दिखला कर,
अश्क़ों में डूबी, फिर आने के लिए ।
बहुत मुश्किल है, रहमत के बिना,
इस दिल में बसे, ना जाने के लिये ।
हासिल हो सब को, मांगी है दुआ,
कर क़ुबूल खुदा, दीवाने के लिये ।
' रवीन्द्र '
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