Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख़ुशी

 

जलाये अरमां, तुझे पाने के लिये,
मांगी है मसर्रत, ज़माने के लिये ।

 

 

आये बहार बन के, ना हसरत है,
क़तरा काफ़ी, मुस्कराने के लिये ।

 

 

खोई ख्वाबों में, अक्स दिखला कर,
अश्क़ों में डूबी, फिर आने के लिए ।

 

 

बहुत मुश्किल है, रहमत के बिना,
इस दिल में बसे, ना जाने के लिये ।

 

 

हासिल हो सब को, मांगी है दुआ,
कर क़ुबूल खुदा, दीवाने के लिये ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

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