Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किरदार

 

तुझसे मेरा यहाँ, सरोकार है कि नहीं,
बसना तुझे मेरे, अफ़कार है कि नहीं ।

 

मुद्दत सी हो गयी है , उड़ते हुऐ जहां में,
बा-तबस्सुम तू खड़ा, मददगार है कि नहीं ।
यायावर फिरता रहा, फाख्ता मेरे मन का,
कफ़स के किले का, किलेदार है कि नहीं ।

 

झुकी उनकी नज़र, हम रहे ना हमनज़र,
दिल को नहीं खबर, गुनहगार है कि नहीं ।
जंग हो या इश्क, जीत है मुनासिब यहाँ,
हारना है दिल यहाँ, खबरदार है कि नहीं।

 

सलीका इस रूह ने, साँसों से सीखा है,
पाक बन के आएगी, ऐतबार है कि नहीं ।
बेदखल किया गम, मेहरबां कोई बसाया,
फैसला है दिल का, असरदार है कि नहीं ।

 

गुनाह धुल गये सभी, बहाव में बहते बहते,
दरम्यां दो किनारों के, मँझधार है कि नहीं ।
खो जाती खुद-ब-खुद, आगाज़-ए-बहार पर,
ख़िजा का जहाँ में, अलमदार है कि नहीं ।

 

छटपटाती रूठ कर, छुपती अंधेरों में कहीं,
रूह का इस दिल में, तरफ़दार है कि नहीं ।
खामोशी है प्रश्न मेरा, मौन तेरा जवाब हो,
इश्क़ में इतना मेरा, इख्तियार है कि नहीं ।

 

एक अदनी इबादत, मुकम्मल हुई है अभी,
ये दिल अब भी तेरा, तलबगार है कि नहीं ।
है रोशन तेरे नूर से, इश्क़ का सारा जहाँ,
कर रही हर शै यहाँ, इन्तेजार है कि नहीं ।

 

इश्क़ ये जबसे हुआ, सोच इतना सा रहा,
जी रहा मुझ में तेरा , किरदार है कि नहीं ।

 

' रवीन्द्र '

 

 

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